
विशेष संवाददाता
बेकाबू डंपर, बेखौफ माफिया और बेपरवाह प्रशासन!”
अवैध डंपरों का आतंक: कानून कुचला, जनता डरी
बिना नंबर प्लेट, बिना डर – डंपर बन गए हैं मौत की गाड़ी
आरटीओ-ट्रैफिक पुलिस की चुप्पी, हादसों की खुली छूट!
कानपुर में सड़कें टूटी नहीं, प्रशासन की संवेदनशीलता टूटी है
कानपुर – शहर की सड़कों पर दौड़ते भारी-भरकम डंपर अब विकास के नहीं, विनाश के प्रतीक बन गए हैं। नियमों की धज्जियां उड़ाते ये डंपर जहां-तहां रफ्तार भरते हैं, ओवरलोड होकर चलते हैं और बिना नंबर प्लेट के खुलेआम घूमते हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि इन्हें रोकने वाला कोई नहीं। आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस की चुप्पी अब संदेह नहीं, बल्कि सवाल बन चुकी है।
नियम केवल आम आदमी के लिए?
सड़क पर चलते दोपहिया या चारपहिया वाहन जरा सा नियम तोड़ें, तो चालान हाथ में थमा दिया जाता है। मगर इन डंपरों की ओर न कोई देखता है, न पूछता है। नौबस्ता चौराहे से लेकर पनकी और सचेंडी तक, डंपर धड़ल्ले से दौड़ रहे हैं, लेकिन न सीसीटीवी में रिकॉर्ड हो रहे हैं, न प्रशासन की पकड़ में आ रहे हैं।
ओवरलोडिंग: सड़कें टूट रही हैं, जानें भी जा रही हैं
डंपरों में जरूरत से कहीं ज्यादा मौरंग, बालू या मिट्टी भर दी जाती है। इससे सड़कें टूटने लगी हैं, यातायात बाधित होता है और हादसों का खतरा कई गुना बढ़ गया है। पिछले महीनों में कई लोग इन डंपरों की चपेट में आ चुके हैं, कुछ की जान भी गई है।
आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस की भूमिका पर सवाल
जब इन डंपरों की गतिविधियां आम जनता तक को दिख रही हैं, तो आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस को क्यों नहीं दिखतीं? क्या यह लापरवाही है या मिलीभगत? क्या ट्रैफिक नियम सिर्फ आम जनता पर लागू होते हैं? यह सवाल अब कानपुर की जनता को कचोट रहा है।
पर्दे के पीछे कौन है?
शहर में चर्चा है कि इन अवैध डंपरों के पीछे किसी बड़ी साठगांठ का खेल चल रहा है। बिना राजनीतिक या प्रशासनिक संरक्षण के यह धंधा लंबे समय तक नहीं चल सकता। कौन लोग हैं जो खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और फिर भी अछूते हैं?