
झांसी। हमारे समय की में हॉकी आर्टिस्टिंग और स्किल से परिपूर्ण हुआ करती थी।आज वैसी हॉकी मैदान पर कम ही देखने को मिलती है। ये बात पूर्व ओलंपियन सुजीत कुमार श्रीवास्तव ने झांसी में खेल विश्लेषक बृजेंद्र यादव से बातचीत में कही। उन्होंने बताया कि वर्तमान में हॉकी के नियमों के बदलते स्वरूप के चलते कलात्मक हॉकी का युग अब पावर में परिवर्तित हो गया है।हालांकि आज की भारतीय टीम के नए लड़कों में नई स्किल के साथ साथ पावर गेम बेहतर है। उन्होंने नए नियमों में पेनाल्टी शूट आउट का उदाहरण देते हुए कहा कि इस विद्या में आज के खिलाड़ी गोलकीपर को अपनी स्किल से गोलकीपर को चक्रधिनीं में फंसा कर गोल करने में महारथ हासिल हैं। जबकि पहले ड्रा मुकाबलों में सिर्फ पेनाल्टी कॉर्नर ही हुआ करते थे।इंडियन हॉकी लीग के बारे में उन्होंने कहा कि ये भारतीय हॉकी को नई संजीवनी देने जैसी हॉकी लीग है।
1988 सियोल ओलंपिक में भारतीय हॉकी का जाना पहचान नाम सुजीत कुमार सिंह की बात हो रही है।बात 1981 की है जब सुजीत 12 वीं कक्षा में मेरठ हॉकी छात्रावास में हॉकी और पढ़ाई शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।माता पिता के अपने को पूरा करने के लिए मेरठ स्टेडियम में छात्रावास के अपने साथियों के साथ घंटों हॉकी का अभ्यास किया करते थे।पिता की ख्वाहिश थी थी कि मेरा बेटा भारतीय टीम की नीली जर्सी पहन कर अपने देश का नाम विश्व पटल पर रोशन करे।
सुजीत कुमार का ध्येय भी भारतीय टीम में शामिल होने का था। कई टूर्नामेंटों में उनके बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए उस समय के भारतीय हॉकी चयनकर्ताओं ने उनका चयन लखनऊ में आयोजित होने वाले भारतीय जूनियर हॉकी टीम के कैंप के लिए किया।उसी समय सीनियर टीम के लड़कों का कैंप पटियाला में चल रहा था। सुजीत कुमार ने खेल विश्लेषक बृजेंद्र यादव से झांसी में बात करते हुए ये संस्मरण बताते हुए कहा कि मैं जूनियर इंडिया के कैंप में था, सीनियर टीम के कैंप में न होने के बावजूद चयनकर्ताओं ने मेरे खेल के प्रदर्शन को देखते हुए मुझे सीनियर भारतीय टीम में शामिल किया। सुजीत ने बताया कि भारतीय जूनियर हॉकी टीम में मेरे साथ साथ मेरठ हॉस्टल के हमारे 12 साथी उस समय टीम का हिस्सा बने। उन्होंने बताया कि वह इलाहाबाद के मूल निवासी हैं,फिलहाल वह कई वर्षों से लखनऊ के गोमतीनगर में रह कर केडी सिंह बाबू सोसायटी के माध्यम से हॉकी के नौनिहालों को तैयार कर रहे हैं।
दिग्गज हॉकी खिलाड़ी सुजीत बताते हैं, मेरा चयन सीनियर भारतीय टीम में हुआ तो यूरोप टूर में भारतीय टीम ने गोल्ड मेडल जीत कर वतन वापसी की और लौटते ही मुझे जूनियर टीम का कप्तान बना दिया गया। उन्होंने कहा, जूनियर विश्व कप के क्वालीफाइंग टूर्नामेंट में मेरी कप्तानी में टीम इंडिया ने रजत पदक मिला। इसके अलावा वर्ष 1988 में केन्या के टूर पर गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय टीम सदस्य भी रहा। सुजीत कुमार श्रीवास्तव को भारतीय और प्रदेश की हॉकी में शानदार प्रदर्शन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2016 में लक्ष्मण अवॉर्ड से भी सम्मानित किया।