
“जो व्यवस्था बनाए रखने को तैनात थे, वही व्यवस्था से नदारद!”
“यूपी पुलिस 100 नंबर पर हो सकती है,
लेकिन कानपुर कमिश्नरेट से 161 अपने नंबर से ग़ायब है..
विशेष संवाददाता
कानपुर। उत्तर प्रदेश पुलिस महकमे से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने न केवल पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि कानून व्यवस्था की नींव को भी हिला कर रख दिया है। कानपुर कमिश्नरेट से 161 पुलिसकर्मी छुट्टी पर गए… लेकिन अब तक लौटे ही नहीं! ये कोई ताजा घटना नहीं, बल्कि महीनों पुरानी ‘गायब’ फाइल का पर्दाफाश है।
🔎 कानून के रक्षक या लापता सिपाही?
सूत्रों के अनुसार इन 161 पुलिसकर्मियों में चारों जोन, ट्रैफिक विंग और पुलिस लाइन के जवान शामिल हैं। कई ऐसे हैं जो 3 से 6 महीने से बिना सूचना के ड्यूटी से नदारद हैं। छुट्टी ली गई थी वैध, लेकिन वापसी का कोई नामोनिशान नहीं।
📞 संपर्क के तमाम प्रयास विफल
पुलिस विभाग ने फोन किए, नोटिस भेजे, पत्राचार किया—पर कोई जवाब नहीं। कुछ तो घर पर ही आराम फरमा रहे हैं, मानो विभाग से कोई नाता ही न हो।
⚖️ अब विभागीय कार्रवाई की तैयारी
डीसीपी क़ासिम आबिदी ने स्पष्ट किया है कि सभी ‘गैरहाजिर’ पुलिसकर्मियों को ‘डिसलोकेट श्रेणी’ में डाल दिया गया है और अब उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जा रही है।
❗ क्या यह सिर्फ लापरवाही है या कोई संगठित साजिश?
यह सवाल अब गहराता जा रहा है कि—
🔴 क्या ये सिर्फ छुट्टी पर गए जवान हैं या कोई अंदरूनी ‘सिस्टमिक फेलियर’ का हिस्सा?
🔴 क्या विभाग की निगरानी प्रणाली इतनी ढीली हो चुकी है कि 161 जवान बिना रोक-टोक महीनों तक ‘गायब’ रह सकते हैं?
🔴 क्या पुलिस महकमे में कोई ‘गैर-जिम्मेदाराना नेटवर्क’ काम कर रहा है?
🧱 सिस्टम के अनुशासन की नींव हिलती नजर आ रही है
जो विभाग आम जनता को कानून का पालन सिखाता है, अगर उसी विभाग के लोग अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाएं, तो जनता का भरोसा और सुरक्षा, दोनों संकट में आ सकते हैं।