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अन्नदाताओं की समस्या से सभी ने मूंद लीं आंखें, विवश हो चंदे पर तैयार की खुद की डगर

 

तीन किलोमीटर की दूरी को 21 किलोमीटर में करना पड़ रहा तय
नागेन्द्र प्रताप शुक्ल
बिजुआ खीरी। खस्ताहाल सड़कें आज भी इलाके के विकास को दर्शाती है। जो स्थानीय वाशिंदों के लिए बड़ी मुसीबत हैं। खासकर गन्ना किसानों के सामने यह समस्या सालों से चली आ रही है। यूं तो सहकारी समिति, गन्ना विकास परिषद और चीनी मिल किसानों की समस्याओं को दूर करने का दम भरते रहते हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। ग्राम मटेहिया से कई गांवों तक जाने वाला एकलौता संपर्क मार्ग बाढ़ की विभीषिका का दंश लगातार झेल रहा है। इस समय भी यहां पर करीब 150 मीटर का रास्ता खराब है, जिससे आवागमन मुश्किल हो जाता है। जब किसी ने साथ नहीं दिया तो मजबूर होकर यहां के वाशिंदों ने खुद ही सहयोग कर रास्ते पर मिट्टी डालने का काम शुरू कर दिया। हालांकि उसमें भी काफी दिक्कतो का सामना इन्हें करना पड़ा । रविवार को मरम्मत के दौरान कई बार ट्रैक्टर खराब रास्ते में फंस गया, जिसे निकालने में घंटों का समय बर्बाद हुआ ।
नहीं हो पा रही सुचारू रूप से गन्ने की सप्लाई
चीनी मिल में पेराई शुरू हुए दो महीने से अधिक का समय गुजर चुका है लेकिन अब तक इस क्षेत्र के किसान सुचारू रूप से गन्ना सप्लाई नहीं कर पा रहे। वजह यही खराब मार्ग है। इस मार्ग के उस पार करीब  हजारो एकड़ कृषि भूमि पड़ती है। यह इकलौता मार्ग है जो बरुआ कलां, छोटा बरुआ, बोझवा आदि गांवों को जोड़ता है। बाढ़ की वजह से इस सड़क का बड़ा भाग खराब हो गया। अभी भी यहां आस पास शारदा नदी का पानी भरा है। जिस वजह से दिक्कत आती है। और पलिया बजाज चीनी मिल तक गन्ने की फसल ले जाने के लिए करीब 20 से 21 किलोमीटर का लम्बा फासला नापना पड़ता है।
नहीं मिली कोई मदद
यहां के किसान दीपक मौर्य, सरजीत सिंह ,सतीश कुमार मौर्य, गया प्रसाद गुप्ता ,अमरीक सिंह, सतनाम सिंह ,सुनील कटियार ,जय सिंह, सूबेदार ,नन्नू बीडीसी ,कन्नौजी यादव ,रमेश मौर्य, धर्म सिंह यादव ,बांकेलाल भार्गव, ध्यान सिंह यादव, बांकेलाल मौर्य ,मनोज कुमार मौर्य ,मंजेश यादव, उत्तम मौर्य, महेशी कश्यप ,रामकुमार गुप्ता, प्रमोद गुप्ता ,काशीराम मौर्य आदि ने बताया कि आज तक किसी जिम्मेदार ने इस मार्ग को ठीक करने की जहमत नहीं उठाई। यहां रपटा पुल की सख्त आवश्यकता है। वे लोग हर साल गन्ना सीजन के समय आपसी सहयोग से यहां मिट्टी डाल देते हैं। फिर भी गन्ने की ट्रॉली व दनलफ़ निकालने के लिए कभी कभी दो दो ट्रैक्टर लगाने पड़ जाते हैं इससे सप्लाई का खर्च बढ़ता है।

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